Namaz Me Qirat नमाज़ में किरत का सुन्नति बयान कुछ जरुरी मालूमात
Namaz Me Qirat |
किरअत का बयान - नमाज़ में किरत (Namaz Me Qirat) की कुछ जरुरी मसले मसाइल जानकारी
किरअत यानी कुरआन शरीफ (Namaz Me Qirat) पढ़ने में इतनी आवाज़ होनी चाहिए कि अगर बहरा न हों और शोर व गुल न हो तो खुद अपनी आवाज़ सुन सके अगर इतनी आवाज़ भी न हुई तो किरअत (Namaz Me Qirat) नहीं हुई और नमाज़ न होगी ।
( दुरे मुख्तार जिल्द १ सफ्हा ३५ ९ )
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मसहालहः फज्र में और मगरिब व ईशा की पहली दो रकअतों में और जुम्आ व ईदैन व तरावीह और रमज़ान की वित्र में इमाम पर जहर के साथ किरअत करना वाजिब है और मगरिब तीसरी रकअत में और इशा की तीसरी और चौथी रकअत में और जुहर व अस्र की सब रकअतो में आहिस्ता पड़ना वाजिब है
Namaz Me Qirat |
मसहालहः जहरी नमाजों में अकेले को इख़्तियार है चाहे ज़ोर से पड़े आहिस्ता मगर जोर से पढ़ना अफजल (Namaz Me Qirat) है
( दरें मुख्तार सफहा ३५८ )
मसहालहः कुरआन शरीफ उलटा पड़ना मकरूहे तहरीमी है मसलन यह कि पहली रकअत में कुल हुवल्लाह और दुसरी में तब्बत यदा पढ़ना (Namaz Me Qirat) .
( दुरे मुख्तार सफ्हा ३६८ )
मसहालहः दरमियान से एक छोटी सूरह छोड़कर पढ़ना मकरूह है जैसे पहली में कुल हुवल्लाह और दुसरी में कुल अऊ जु विराबिन्नास पढ़ी और दरमियान में सिर्फ एक सूरह कुल अऊर्जु विरब्बिल फलक छोड़ दी लेकिन हाँ अगर दरमियान की सूरह पहले से बड़ी होतो दरमियान में एक सूरह छोड़कर पढ़ सकता (Namaz Me Qirat) है ।
ये एक छोटी से इस्लाही जानकारी जो आप के इल्म में रौशनी भर सकती हैं नमाज़ में किरात (Namaz Me Qirat) बहुत एहम रोल होता हैं और नमाज़ हर मोमिन मुस्लमान पर फ़र्ज़ हैं इसे पड़ने से चलेंगे इसे याद भी रखना होना और अगर इस्लामी जानकारी आप ने जानी हैं तो इसे शेयर करे हर जगह और ढेरो साडी निकिया कमाए
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