नमाज़ के फ़राइज़ Namaz Ke Faraiz Farz और शरीयत In Hindi - Namaz Books
नमाज़ के फ़राइज़ (Namaz Ke Farz Faraiz) की बात करे तो आप यक़ीनन जानते ही होंगे कि इस्लाम के कानून के हिसाब से शरीअत में कुछ काम फ़र्ज़, कुछ वाजिब और कुछ सुन्नत होते हैं
उन में से जो काम फ़र्ज़ होते हैं उसे एक मोमिन मुसलमान को अब वो मर्द हो या औरत हर हाल में कायम करना उसे पूरा करना जरुरी हो जाता हैं। इस तरह से जो वाज़िब और सुन्नत हैं उसके अलग कायदे और मसले मसले हैं उसे जानने के लिए यहाँ पर क्लिक करे।
इस पोस्ट में हम नमाज़ के फ़र्ज़ (Namaz Ke Farz Faraiz) के बारे में पूरा मुकम्मल जानेंगे जो आप के इल्म का एक बहेतर हिस्सा होगा।
मसला
याद रहे अगर नमाज़ में आप से भूलकर या अनजाने में अगर कोई फ़र्ज़ छूट जाता हैं तो आप की नमाज़ मुकम्मल नहीं होंगी और आप को नमाज़ हर हाल में फिर से अदा करनी होंगी, अगर आप नमाज़ फिर से नहीं पढ़ते है तो आप पर की वो नमाज़ क़ज़ा कहलाएंगी,
और अगर वाजिब छूट जाए तो आप नमाज़ के आखिर में कायदे में सजदा ऐ सवह यानि अतियातो पढ़ने के बाद दो सजदे करना सजदा ऐ सवाह कहलाता हैं उसे पूरा जानने के लिए यहाँ क्लिक्स करे। सज्दा ऐ सवाह करके आप नमाज़ को पूरा कर सकते है जिससे आप की नमाज़ मुकम्मल हो जाएंगी।
नमाज़ के फ़राइज़ (Namaz Ke Farz Faraiz) टोटल १२ फ़र्ज़ हैं जिसमे से 5 नमाज़ के अदा करने के पहले के और 7 नमाज़ के दौरान के आइये जानते हैं
जिनमें से चन्द् ऐसे हैं जिन का नमाज़ से पहले | होना जुरुरी है और उनको नमाज़ के खार्जी फराइज़ और शराइते नमाज़ भी कहा जाता है और चन्द फराइज़ वह हैं जो दाखिले नमाज़ हैं सबकी फिहरिस्त यह है
- शराइते नमाज़ में नमाज़ के पहले के नमाज़ के फ़राइज़ (Namaz Ke Farz Faraiz)।
( १ ) तिहारत यानी बदन और कपड़ों का पाक होना
( २ ) सतरे औरत यानी मर्दो को नाफ से घुटनों तक और औरतों को चहरे और हथेलियों और कदमों के अलावा तमाम बदन का ढाँकना फर्ज है
( ३ ) नमाज़ का वक्त होना
( ४ ) क़िब्ले की तरफ रुख होना
( ५ ) नमाज़ की नीयत करना।
- शराइते नमाज़ में नमाज़ में अदा होने वाले जरुरी के नमाज़ के फ़राइज़ (Namaz Ke Farz Faraiz)।
( १ ) तक्बीरे तहरीमा
( २ ) कयाम यानी खड़ा होना
( ३ ) किरअत यानी एक बड़ी आयत या तीन छोटी आयतें या एक छोटी सूरत पढ़ना
( ४ ) रुकूअ करना
( ५ ) सिज्दा करना
( ६ ) काअदए अखिरह
( ७ ) अपने इरादे से नमाज़ खत्म करना : अगर इनमें से कोई चीज़ भी जानकर या भूल कर रह जाए तो | सिज्दए सवह करने से भी नमाज़ न होगी बल्कि दुबारा पढ़ना जुरुरी होगा
( १ ) तक्बीरे तहरीमा
नमाज़ शुरू करने के लिए जो दोनों हाथ बांध ते है और अल्लाह हु अकबर कहते हैं उसे ही तक्बीरे तहरीमा कहते हैं और ये नमाज़ में फ़र्ज़ (Namaz Ke Farz Faraiz) हैं
मसलह
अगर एक गूंगा जबान से महरूम इंसान अल्लाह हु अकबर न बोले तो उसपर कहना जरुरी नहीं दिल में इरादा करने से भी उसका तक्बीरे तहरीमा मुकम्मल हो जाएंगे
( २ ) कयाम यानी खड़ा होना
मोमिन नमाज़ के लिए खड़ा होता हैं तो उसे ही कायम में खड़ा होना बोलते हैं
मसलह
अगर कोई इंसान में ताकत नहीं खड़े होने की और कोई इंसान पैरो से बेजार हैं तो वह बैठ के भी नमाज़ पढ़ सकता हैं उसके लिए नमाज़ में कायम करना जरुरी नहीं।
मसलह
नमाज़ में खड़े होने के लिए दोनों पैरो के बिच 4 उंगल का फासला होना चाहिए।
( ३ ) किरअत यानी एक बड़ी आयत या तीन छोटी आयतें या एक छोटी सूरत पढ़ना ये नमाज़ के फ़राइज़ में से एक फ़राइज़ (Namaz Ke Farz Faraiz) हैं
नमाज़ में क़ुरान की आयात पढ़ना अल्हमदो सूरे फातिया के बाद जरुरी हैं। अगर आप को एक बड़ी सूरा याद हैं तो आप एक बड़ी आयात पढ़े।
अगर आप को तीन छोटी छोटी आयते याद हैं तो उसे पढ़े हर ताकत में।, या हर रकत में एक अलग अलग छोटी रकत भी पढ़ा जा सकता हैं
मसलह
अगर किसी को एक ही छोटी आयात याद हैं तो वो वही एक छोटी आयात हर रकत में पढ़ सकता है मगर उसके लिए जरुरी है की वो और भी आयते याद करले
मसलह
अगर किसी को क़ुरान अरबी पढ़ना नहीं आता तो वो उसे जो भाषा में आती है जररुई हैं वो उस भाषा में पढ़कर याद करले आजा मार्किट में हर भाषा के अल्फाबेट में सूरे की किताब मौजूद हैं
मसलह
अगर किसी को कुछ भी सूरे नहीं आती तो उसे चाहिए की फिर भी नमाज़ अदा करे और नमाज़ के हालत में खड़ा रहे। और उतना ही टाइम लगाए जितना आम लोग नमाज़ में लगते हैं और रुक्कू सजदा वैसे ही करे जैसे इमाम करता है सिदा बोले तो नमाज़ की नक़ल करे
परन्तु फिर भी नमाज़ को सिखले और उसमे पढ़े जाने वाले सूरे आयते
( ४ ) रुकूअ करना
रुकू का मतलब होता है की नमाज़ में अल्लाह के सामने छुक जाना कमर के बल और इतना छुक जाना की उसके दोनों हाथ उसके पैरो के गुटनो पर और सर, पीठ के जैसे सीधे तरह हो
मसलह
रुक्कू में नज़रे सजदे की जगह पर हो या दोनों पैरो के दरमियान हो
( ५ ) सिज्दा करना
सज्दा यानि अपने दोनों पेअर के घुटनो के बल और (नाक का सेंडा) या (नाक का पेठ) और सर का माथा (पेशानी) जमीन पर टिकना। इसको सजदा कहते हैं
Namaz Ke Faraiz Farz |
मसलह
(सजदे में 4 चीजे लगना बहुत जरुरी है पेशानी नाक हाथ के पंजे और पैरो के गुटने )
मसलह
सजदे करते वक़त जो चीज करनी हैं वो सबसे पहले सजदे में जाते समय अपने पैरों के घुटने जमीं पर टेकना, उसके बाद अपने हाथो के दोनों पंजे, उसके बाद नाक और आखिर में पेशानी मतलब माथा
मसलह
सजदे होने के बाद सजदा करते समय जो जो पहले किया था उसका उल्टा करना मतलब
अपने सर की पेशानी उठाना, फिर नाक उठाना , फिर हांतो के दोनों पंजे उठाना आखिर में खड़े होने के लिए दोनों पैरो के घुटने उठाना
मसलह
सजदे में नजते नाक के दरमियान रखें
मसलह
सजदा करते समय हाथ के दोनों पंजे की उंगलियों में थोड़ा थोड़ा फसला रखें
मसलह
सजदे में सुब्हान रब्बिल अज़ीम कहना तीन बार चार बार या सात बार, हो सके तो सजदे लम्बे करना
( ६ ) काअदए अखिरह
काअदए अखिरह का मतलब होता हैं नमाज़ के आखिर में बैठने को काअदए अखिरह कहते हैं जिसमे हम अतियातो और दरूद इब्राहिम पढ़ते हैं
( ७ ) अपने इरादे से नमाज़ खत्म करना : अगर इनमें से कोई चीज़ भी जानकर या भूल कर रह जाए तो | सिज्दए सवह करने से भी नमाज़ न होगी बल्कि दुबारा पढ़ना जुरुरी होगा ये नमाज़ के फ़राइज़ (Namaz Ke Farz Faraiz) हैं - Namaz Books
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