Namaz Ka Tarika नमाज़ का सुन्नति और सही-पूरा तरीका हिंदी में - Namaz Books
नमाज़ का तरीका (Namaz Ka Tarika) ये हर मोमिन मर्द औरत पर सीखना फ़र्ज़ हैं और इस्लाम में पांच फर्ज़ो में से एक फ़र्ज़ नमाज़ हैं इस लिए नमाज़ का तरीका (Namaz Ka Tarika) सीखना जरुरी हैं
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बा वुजू किब्ला रू इस तरह खड़े हों कि दोनों पाउं के पन्जों में चार उंगल का फ़ासिला रहे और दोनों हाथ कानों तक ले जाइये कि अंगूठे कान की लौ से छू जाएं और उंग्लियां न मिली हुई हों न खूब खुली बल्कि अपनी हालत पर ( Normal ) रखें और हथेलियां क़िब्ले की तरफ़ हों नज़र सज्दे की जगह हो ।
अब जो नमाज़ पढ़ना है उस की निय्यत या'नी दिल में उस का पक्का इरादा कीजिये साथ ही ज़बान से भी कह लीजिये कि ज़ियादा अच्छा है । ( म - सलन निय्यत की मैं ने आज की जोहर की चार रक्अत फ़र्ज़ नमाज़ की , अगर बा जमाअत पढ़ रहे हैं तो येह भी कह लें पीछे इस इमाम के ) अब तक्बीरे तहरीमा या'नी " अल्लाहु अक्बर " कहते हुए हाथ नीचे लाइये और नाफ़ के नीचे इस तरह बांधिये कि सीधी हथेली की गुद्दी उल्टी हथेली के सिरे पर पेशकश : मजलिसे और बीच की तीन उंग्लियां उल्टी कलाई की पीठ पर और अंगूठा और छुग्लिया ( या'नी छोटी उंगली ) कलाई के अगल बगल हों ।
अब इस तरह सना पढ़िये :
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फिर मुकम्मल सूरे फातिया पढिये :
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सूरए फ़तिहा ख़त्म कर के आहिस्ता से " आमीन " कहिये । फिर तीन आयात या एक बड़ी आयत जो तीन छोटी आयतों के बराबर हो या कोई सूरत म - सलन सूरए इख्लास पढ़िये :
बिस्मिल्ला इर्रहमान निर्रहीम
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अब " अल्लाहु अक्बर " कहते हुए रुकूअ में जाइये और घुटनों को इस तरह हाथ से पकड़िये कि हथेलियां घुटनों पर और उंग्लियां अच्छी तरह फैली हुई हों । पीठ बिछी हुई और सर पीठ की सीध में हो ऊंचा नीचा न हो और नज़र क़दमों पर हो । कम अज़ कम तीन बार रुकूअ की तस्बीह या'नी " सुभान-रब्बिल आला " ( या'नी पाक है । ने उस : मेरा अ - ज़मत वाला परवर दगार ) कहिये ।
फिर तस्मीअ या'नी "समी अल्लाहो लिमन हमीदा " . ( या'नी अल्लाह ने उसकी की सुन ली जिस ने उस की तारीफ़ की ) कहते हुए बिल्कुल | सीधे खड़े हो जाइये , इस खड़े होने को " कौमा " कहते । अगर आप मुन्फरिद हैं या'नी अकेले नमाज़ पढ़ रहे | हैं तो इस के बा'द कहिये .
"अल्लाहुम्मा रब्बिना वलकल हम्द "
ऐ अल्लाह ! ऐ हमारे मालिक ! सब खूबियां तेरे ही लिये हैं
फिर " अल्लाहु अक्बर " कहते हुए इस तरह सज्दे में जाइये कि पहले घुटने ज़मीन पर रखिये फिर हाथ फिर दोनों हाथों के बीच में इस तरह सर रखिये कि पहले नाक फिर पेशानी और येह ख़ास ख़याल रखिये कि नाक की नोक नहीं बल्कि हड्डी लगे और पेशानी ज़मीन | पर जम जाए , नज़र नाक पर रहे , बाजूओं को करवटों से , पेट को रानों से और रानों को पिंडलियों से जुदा रखिये ।
( हां अगर सफ़ में हों तो बाजू करवटों से लगाए रखिये ) और दोनों पाउं की दसों उंग्लियों का रुख इस तरह क़िब्ले की तरफ़ | रहे कि दसों उंग्लियों के पेट ( या'नी उंग्लियों के तल्वों के उभरे हुए हिस्से ) ज़मीन पर लगे रहें । हथेलियां बिछी रहें और उंग्लियां " क़िब्ला रू " रहें मगर कलाइयां ज़मीन से लगी हुई मत रखिये । और अब कम अज़ कम तीन बार सज्दे की तस्बीह या'नी "सुब्हान रब्बिल आला " ( पाक है मेरा परवर्द गार सब से बुलन्द ) पढ़िये ।
फिर सर इस तरह उठाइये कि पहले पेशानी फिर नाक फिर हाथ उठे । फिर सीधा क़दम खड़ा कर के उस की उंग्लियां क़िब्ला रुख कर दीजिये और उल्टा क़दम बिछा कर | उस पर खूब सीधे बैठ जाइये और हथेलियां बिछा कर रानों पर घुटनों के पास रखिये कि दोनों हाथों की उंग्लियां क़िब्ले की जानिब और उंग्लियों के सिरे घुटनों के पास हों । दोनों सज्दों के दरमियान बैठने को जल्सा कहते हैं ।
फिर कम अज कम एक बार "सुभानअल्लाह" कहने की मिक्दार ठहरिये। फिर “ अल्लाहु अक्बर " कहते पहले सज्दे ही की तरह दूसरा सज्दा कीजिये । अब इसी तरह पहले सर उठाइये फिर हाथों को घुटनों पर रख कर पन्जों के बल खड़े हो जाइये । उठते वक़्त बिगैर मजबूरी ज़मीन पर हाथ से टेक मत लगाइये । येह आप की एक रक्अत पूरी हुई ।
अब दूसरी रक्अत में "बिस्मिल्ला इर-रहमान निर्रहीम " पढ़ कर अल हम्द और सूरत पढ़िये और पहले की तरह रुकूअ और सज्दे कीजिये , दूसरे सज्दे से सर उठाने के बाद सीधा क़दम खड़ा कर के उल्टा क़दम बिछा कर बैठ जाइये दो ? रक्अत के दूसरे सज्दे के बा'द बैठना का'दह कहलाता है अब का'दह में तशहुद पढ़िये :
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जब तशहुद में लफ़्जे " लाम-अलिफ " के करीब पहुंचे तो सीधे हाथ की बीच की उंगली और अंगूठे का हल्का बना लीजिये और छुग्लिया ( या'नी छोटी उंगली ) और बिन्सर या'नी उस के बराबर वाली उंगली को हथेली से मिला दीजिये और ( "अशदु-ला" के फ़ौरन बा'द ) लफ़्ज़े "ईल लॉ" कहते ही कलिमे की उंगली उठाइये मगर इस को इधर उधर मत हिलाइये और लफ़्ज़ " " पर गिरा दीजिये और फ़ौरन सब उंग्लियां सीधी कर लीजिये ।
अब अगर दो से ज़ियादा रक्अतें पढ़नी हैं तो “ अल्लाहु अक्बर " कहते हुए खड़े हो जाइये । अगर फ़र्ज नमाज़ पढ़ रहे हैं तो तीसरी और चौथी रक्अत के क़ियाम में " बिस्मिल्ला इर्रहमान निर्रहीम " और " अल हम्द " शरीफ़ पढ़िये ! सूरत मिलाने की ज़रूरत नहीं । बाक़ी अफ्आल इसी तरह बजा लाइये और अगर सुन्नत व नफ्ल हों तो
" सूरए फ़ातिहा " के बाद सूरत भी मिलाइये ( हां अगर इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ रहे हैं तो किसी भी रक्अत के क़ियाम में किराअत न कीजिये ख़ामोश खड़े रहिये ) फिर चार रक्अतें पूरी कर के का'दए अख़ीरा में तशहुद के बा'द दुरूदे इब्राहीम पढ़िये :
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Namaz Ka Tarika |
फिर नमाज़ ख़तम करने के लिए पहले दाए कंधे की तरफ मुंह कर के
" अस्सलामु अलैकुम व-रहमतुल्ला "
कहिये और इसी तरफ बाएं तरफ अब नमाज़ ख़तम हुई।
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